




The Khabar Xpress 17 जून 2025। केंद्र सरकार ने जनगणना के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। इसी के साथ आजादी के बाद पहली बार जातीय जनगणना का रास्ता साफ हो गया है। अब पूरे देश में मार्च 2027 की रेफरेंस डेट से जातीय जनगणना कराई जाएगी। हालांकि, इससे पांच महीने पहले अक्तूबर 2026 में पहाड़ी राज्यों में जातीय जनगणना का कार्यक्रम पूरा कर लिया जाएगा। यानी इन राज्यों में अक्तूबर 2026 में आबादी से जुड़े जो भी आंकड़े होंगे, वही रिकॉर्ड में दर्ज किए जाएंगे।
जनगणना की अधिसूचना जारी होने के बाद आगे क्या-क्या होगा? इस बार आबादी की गिनती की प्रक्रिया कितनी अलग होगी? आम जनगणना से जातीय जनगणना कितनी अलग होती है? भारत में इस तरह की जनगणना का क्या इतिहास रहा है? इसके अलावा देश में कब-कब जातिगत जनगणना की मांग हुई है? आइये जानते हैं…

अब जानें- अधिसूचना जारी होने के बाद क्या होगी प्रक्रिया?
जनगणना का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद केंद्र सरकार को 1948 के जनगणना कानून के तहत इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होता है। यह तीन चरणों में आगे बढ़ता है…

जनगणना करने वाले अधिकारी किस तरह के सवाल पूछेंगे?
जनगणना का कार्यक्रम जितना दिखता है, उतना आसान नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ भारत में रहने वाले लोगों की गिनती नहीं है। वृहद तौर पर देखा जाए तो यह भारत में कई पहलुओं को जानने का भी अवसर बनता है। मसलन देश में कितनी आबादी है, इसमें पुरुषों-महिलाओं की जनसंख्या कितनी है? साक्षरता दर कितनी है? किस धर्म के कितने लोग भारत में बसते हैं? भारत में प्रजनन दर कितनी है? अलग-अलग वर्गों की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि। यानी जनगणना लोगों की गिनती ही नहीं, बल्कि समाज के मूलभूत ढांचे को समझने का भी जरिया है।
ऐसे में केंद्र सरकार हर बार काफी विचार के बाद अलग-अलग चरणों के लिए सवालों का जत्था तैयार करती है। पहला चरण- घरों को सूचीबद्ध करने का है। इसमें घरों और उनकी स्थिति से जुड़े सवालों को प्राथमिकता दी जाती है। 2011 की जनगणना की बात करें तो उसमें 35 सवाल शामिल थे। जैसे-
- घर किस तरह के और किस हाल में हैं?
- घर में पीने के पानी की क्या व्यवस्था है?
- शौचालय है या नहीं और अगर है तो किस तरह का शौचालय मौजूद है?
- किचन किस तरह का है और उसमें खाना पकाने के लिए कौन सा ईंधन इस्तेमाल होता है?
- घर में किस तरह का वाहन इस्तेमाल किया जाता है?
- आवास में फोन, टेलीविजन, कंप्यूटर इत्यादि सुविधाएं हैं या नहीं?
- इंटरनेट की सुविधा है या नहीं, स्मार्टफोन कितने और किसके पास हैं?
- खाना किस तरह का खाते हैं, कौन सा अनाज ज्यादा इस्तेमाल होता है?
कुछ इसी तरह अलग से सवालों का एक जत्था आबादी की गणना करने के लिए भी बनाया जाता है। 2011 के सवालों को ही ले लें तो लोगों से उनका नाम, लिंग, उम्र, धर्म, किस जाति से हैं (एससी या एसटी), मातृभाषा, शैक्षणिक स्तर, नौकरी, आदि को लेकर सवाल पूछे जाते हैं। बीते दशक जो जनगणना हुई थी, उसका पूरा डाटा मार्च के अंत तक रिलीज कर दिया गया था। इसकी आखिरी रिपोर्ट, जिसमें जनसांख्यिकी, धार्मिक पृष्ठभूमि, भाषाई आधार व अन्य जटिल जानकारियां दी गई थीं, उसे दो साल बाद अप्रैल 2013 में जारी किया गया था।
इस बार कितनी अलग और अहम होगी जनगणना?
1881 में जनगणना शुरू होने के बाद से 2011 तक यह बिना किसी रुकावट के जारी रही। हालांकि, कोरोनावायरस महामारी के चलते 2021 में जारी होने वाली जनगणना को टाल दिया गया था।
2021 के बाद से देश में सरकार ने कई फैसले लिए हैं, जिनसे 2027 की जनगणना बीती सभी जनगणनाओं से अलग हो गई है।

देश में आखिरी बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?
देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।

जातिगत जनगणना की जरूरत क्या है?
- 1947 में देश आजाद हुआ। 1951 में आजाद भारत में पहली बार जनगणना हुई। 1951 से 2011 तक हुई सभी 7 जनगणनाओं में एससी और एसटी की जातीय जगनणना हुई, लेकिन पिछड़ी व अन्य जातियों की जाति आधारित जनगणना कभी नहीं हुई। 1990 में उस वक्त की वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके पिछड़ों को आरक्षण दिया। उस वक्त भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर ही आरक्षण की सीमा तय की गई। 1931 में देश में पिछली जातियां कुल आबादी का 52 फीसदी थीं।
- कई एक्सपर्ट मानते हैं कि मौजूदा समय में देश की कुल आबादी में पीछड़ी जातियों की संख्या कितनी है इसका ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण का आधार उनकी आबादी है, लेकिन ओबीसी आरक्षण का आधार 90 साल पुरानी जनगणना है। जो अब प्रासंगिक नहीं है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा।

जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का दावा है कि ऐसा होने के बाद पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। उनकी बेहतरी के लिए उचित नीति का निर्धारण हो सकेगा। सही संख्या और हालात की जानकारी के बाद ही उनके लिए वास्तविक कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी। वहीं, इसका विरोध करने वाले कहते हैं कि इस तरह की जनगणना से समाज में जातीय विभाजन बढ़ जाएगा। इसकी वजह से लोगों के बीच कटुता बढ़ेगी।
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