



The Khabar Xpress 26 दिसम्बर 2024। इस साल सोमवती अमावस्या 30 दिसंबर को है. यह पौष आमवस्या है. साल 2024 की यह अंतिम अमावस्या भी है. सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान करने की विधान है, इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि भी करते हैं. लेकिन सोमवती अमावस्या के दिन दीपक जलाने का बड़ा महत्व है. इस दीपक को जलाने से जहां देवताओं का आशीर्वाद मिलता है, वहीं पितर भी खुश होते हैं, जिससे परिवार के सुख और समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है. श्रीडूंगरगढ़ के पंडित भवानी शंकर तावणियाँ बताते है कि सोमवती अमावस्या पर किन 5 जगहों पर दीपक जलाना चाहिए ? दीया जलाने का शुभ मुहूर्त क्या है ? सोमवती अमावस्या का महत्व क्या है ?
सोमवती अमावस्या 2024: इन स्थानों पर जलाएं दीया
1. मुख्य द्वार के बाहर
सोमवती अमावस्या के दिन आप अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर माता लक्ष्मी के लिए घी का दीपक जलाएं. घी नहीं है तो सरसों या फिर तिल के तेल का दीपक जलाएं. दीपक वाले स्थान पर एक लोटा पानी भी रख दें और मुख्य द्वार खोलकर रखें. ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी और आपके घर में उनका आगमन होगा. दीपक और जल से नकारात्मकता दूर होगी. यह दीपक आपको सूर्यास्त होने के बाद तब जलाना है, जब अंधेरा होने लगे.
2. घर बाहर दक्षिण दिशा में
सोमवती अमावस्या के अवसर पर घर में बाहर दक्षिण दिशा में अपने पितरों के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाएं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या की शाम पितर जब अपने लोक लौटते हैं तो उनकी राह में उजाला होता है, इससे वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.
3. पूर्वजों की फोटो के पास
अमावस्या के दिन पितर धरती पर आते हैं और अपने वंश से तर्पण, पिंडदान आदि की अपेक्षा करते हैं. यह सब करते हैं तो बहुत अच्छा है. उसके अलावा घर में दक्षिण दिशा में जहां पर अपने पितरों की तस्वीर लगा रखी है तो वहां पर भी एक दीपक जला दें. यह दीपक भी आप सरसों या तिल के तेल का जला सकते हैं.
4. पीपल के पेड़ के पास
पीपल के पेड़ में देवी-देवताओं और पितर देवों का वास होता है. ऐसे में आप सोमवती अमावस्या पर पीपल के पेड़ के नीच सरसों के तेल का एक दीप जरूर जला दें. आप चाहें तो देवों के लिए तिल के तेल का दीपक जला सकते हैं और पितरों के लिए सरसों के तेल का दीपक. ऐसा करने से आपके दुख दूर होंगे और देवों का आशीर्वाद प्राप्त होगा.
5. घर के उत्तर-पूर्व कोण पर
सोमवती अमावस्या के दिन आप अपने घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व कोण में घी का दीपक जलाएं. मान्यताओं के अनुसार, इस दिशा में देवों का वास होता है. आपका घर धन और धान्य से भरेगा. माता लक्ष्मी की कृपा होगी.
सोमवती अमावस्या पर दीपक जलाने का मुहूर्त
सोमवती अमावस्या के दिन आप सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में ये दीपक जलाएं. दीपक अंधकार को दूर करके सकारात्मकता फैलाता है. सोमवती अमावस्या के दिन सूर्यास्त 05:34 पी एम पर होगा. सूर्यास्त के बाद से प्रदोष काल प्रारंभ होता है. इस समय से आप सोमवती अमावस्या का दीपक जला सकते हैं.
पितरों को करे प्रसन्न
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पौष कृष्ण अमावस्या तिथि 30 दिसंबर को तड़के 04:01 बजे से लेकर 31 दिसंबर को तड़के 03:56 बजे तक है. उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए सोमवती अमावस्या 30 दिसंबर को है. सोमवती अमावस्या पर वृद्धि योग सुबह से रात 8 बजकर 32 मिनट तक है और मूल नक्षत्र है, जो रात 11:57 बजे तक है. सोमवती अमावस्या पर सुबह में स्नान के बाद पितरों के लिए तर्पण, दान आदि करते हैं. सोमवती अमावस्या के दिन पितरों को खुश करने के लिए आप दो आसान उपाय कर सकते हैं.
पंडित भवानी शंकर तावणियाँ बताते हैं कि पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, पंचबलि कर्म आदि करते हैं. इस दिन आप स्नान करने के बाद पितरों के देव अर्यमा की पूजा करें. उसके बाद पितर चालीसा और पितृ सूक्तम् का पाठ करते हैं. अमावस्या पर आप इन दोनों में से कोई भी एक पाठ कर सकते हैं. इन दोनों पाठ को करने से पितर खुश होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. आइए जानते हैं श्री पितर चालीसा और पितृ सूक्तम् पाठ के बारे में.
श्री पितर चालीसा
दोहा
हे पितरेश्वर! दे दो आशीर्वाद।
चरण शीश नवा दियो रख दो सिर पर हाथ।।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।।
चौपाई
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पितर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।।
चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझुनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।।
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।।
छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।।
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब पूजे पित्तर भाई।।
हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।।
जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।।
तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।।
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।।
सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्त्र मुख सके न गाई।।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पितर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।।
दोहा
पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पितृ चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।
पितृ सूक्तम् पाठ
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

