



द खबर एक्सप्रेस 09 जनवरी 2023। इतिहासकारों के अनुसार श्रीडूंगरगढ़ शहर जिसको कभी सारसू बास (सरस गढ़) और रूपालसर बास के नाम से जाना जाता था। कालांतर में महाराजा डूंगरसिंह ने इनका विलय कर जेठ बदी-3 संवत 1939 को श्रीडूंगरगढ़ की स्थापना हुई। 143 साल का होने वाला है अपना श्रीडूंगरगढ़।
ये श्रीडूंगरगढ़ कभी अपनी चौड़ी गलियों और एक दूसरे से काटते रास्तों के लिये प्रसिद्ध था आज उसी श्रीडूंगरगढ़ की बदहाली पर आम आदमी, यहाँ के बुद्धिजीवी वर्ग और चंद वोटो के लिये यहाँ के राजनेताओं ने आंखे मूंद रखी है।
- शहर की चौड़ी सड़के आज संकरी हो गई है।
- स्थानीय दुकानदारों ने सड़को पर हद से ज्यादा अतिक्रमण कर रखा है।
- मुख्य सड़क पर डिवाइडर के बीच मे ही रेहड़ी गाड़े वालो ने अपनी दुकान सजा कर सड़क को आम आदमी के लिए भी चलने लायक नही छोड़ा है।
- शहर के सार्वजनिक स्थलों गांधी पार्क, पुस्तकालय, नगरपालिका, पोस्ट ऑफिस और बैंक जैसी जगहों को भी इन लोगो ने नही छोड़ा है। हालात ये है कि खुद एक रेहड़ी लगाते है और दो-तीन ओर रखकर उन्हें गोदाम बना रखा है जिसके कारण सड़के संकरी हो गयी और रोजाना वाहनों की लंबी कतारें लग जाती है
- बेतरतीब खड़े करके चले जाते है वाहन चालक। चाहे चौपहिया हो या दुपहिया हर कोई पोल में ढोल बजा रहा है। क्योंकि रोकने वाला कोई नही है।
- घुमचक्कर से नगरपालिका तक की मुख्य सड़क का आलम ये है कि सड़क के बीच बनी जगह पर या तो वाहन खड़े है या फिर किसी ने अपनी दुकान सजा रखी है।


अमीर पट्टी जहां दुकानों का सामना सड़क पर पसरा रहता है और आम आदमी भी पैदल चल नही सकता।

कस्बे के सार्वजनिक स्थलों पर भी आम आदमी जा नही सकता इतनी भी जगह इन लोगो ने छोड़ी नही है।

हालात ये है कि अगर हॉस्पिटल के लिए एम्बुलेंस भी जानी हो तो रास्ता नही मिलेगा।
उपेक्षा का शिकार श्रीडूंगरगढ़
शहर की बदहाल स्थिति पर आम आदमी ने आंखे बंद कर रखी है क्योंकि कहीं न कहीं वो खुद भी इसके जिम्मेदार है। कस्बे के हालात इतने बदतर हो गए है कि आम आदमी ने प्रशासन से ही अपना विश्वास खो दिया है। प्रशासन द्वारा भी इसकी रोकथाम के कोई प्रयास नही किये जाते।
श्रीडूंगरगढ़ की सब्जी मंडी का हाल बेहाल
श्रीडूंगरगढ़में कहने को तो दो विकसित सब्जी मंडिया है लेकिन सबसे बुरा हाल श्रीडूंगरगढ़ के पुराने बाद स्टैंड का हो रखा है। ये रेहड़ी सब्जी वालो का बहुत बड़ा अतिक्रमित स्थान है जो प्रशासन की लापरवाही से पनप रहा है। ये सब्जी विक्रेता एक दूसरे से होड़ के चलते अपने स्थान से सरक कर आगे आते रहते है और गलियों व इस चौगान का सत्यानाश कर रहे है। हालात ये है कि यहां पर ग्रामीण रुट की बसे लगती है और इन रेहड़ी वालो के कारण उस जगह पर हर 5-7 मिनट में जाम की स्थिति हो जाती है। हालात इससे बदतर है कि इनके गली सड़ी सब्जियों को फेंकने की निर्धारित जगह न होने के कारण आवारा पशुओं का जमावड़ा बना रहता है और हर दूसरे दिन किसी न किसी नागरिक को इन आवारा पशुओं के कारण चोटिल होने पड़ता है।




सब्जी मंडी में रात को असंख्य आवारा पशुधन इकट्ठा हो जाते है।
श्रीडूंगरगढ़ के उपजिला अस्पताल के पास तो ओर ज्यादा बदतर स्थिति है। पक्की और विकसित सब्जी मंडी होने के बावजूद भी ये सब्जी विक्रेता अस्पताल के मुख्य मार्ग को ही बन्द कर देते है। जो सड़क 30 फिट की है वो 10 फिट भी नही रहती। हर दिन मरीजों को परेशान होना पड़ता है। इसके अलावा हॉस्पिटल की बिल्डिंग और नजदीकी बालिका विद्यालय के पास भी ये सड़क पर ही रेहड़ी लगाकर “अंगद के पैर” की तरह जमे हुए रहते है उनकी बला से चाहे एम्बुलेंस वाला परेशान हो या कोई दूसरा गाड़ी वाला। लेकिन वो टस से मस नही होते।
आखिर कब बदलेंगी सूरत ए हाल
जागरूक नागरिको की शिथिलता, नेताओ की अकर्मण्यता और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार ये श्रीडूंगरगढ़ कस्बा और इसके आम नागरिक सिर्फ यही बाट जोह रहे हैं कि कब बदलेगी इस शहर की सूरत ए हाल।
क्यो कोई इस कस्बे की सुंदरता पर ध्यान नही दे रहा …?
क्यो कोई इसकी पुरानी थाती पर लगे ग्रहण को नही हटाता…?
आखिर कब जागेंगे इसके खैरख्वाह…?

