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खेजड़ली आंदोलन की बरसी आज, 295 सालों बाद खेजड़ली आंदोलन की फिर से जरूरत

Published on: September 12, 2025

The Khabar Xpress 12 सितंबर 2025। विकास की गाथा विनाश पर ही लिखी जाती है। जहां एक तरफ सोलर एनर्जी के रूप में विकास की कहानी लिखी जा रही है तो दूसरी तरफ असंख्य वृक्षों का बलिदान दिया जा रहा है। ये विकास ही विनाश की ओर ले जाने का काम कर रहा है। एक तरफ पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित हो रही है तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान में ही सोलर पॉवर प्लांट लगाने के लिये असंख्य पेड़ोको काटा जा रहा है विशेषकर खेजड़ी को। राजस्थान का ये अमृत वृक्ष माना जाता है। इसकी अंधाधुंध कटाई के कारण राजस्थान का पूरा मौसम तंत्र ही हिल गया है। जहां गर्मी अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है तो बारिश के मौसम ने भी कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि ने किसानों को आहत किया है।

पर्यावरणविदों का आकलन बताता है कि पिछले 15 साल में राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिलों में सोलर और विंड प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए करीब 25 लाख पेड़ों की बलि ली जा चुकी है। गौरतलब है कि पिछले डेढ़ दशक में राजस्थान में डेढ़ लाख बीघा क्षेत्र में 28,620 मेगावाट क्षमता के सोलर और विंड प्रोजेक्ट लगाए गए हैं।

खेजड़ली आंदोलन की फिर से जरूरत

खेजड़ली बलिदान दिवस आज है। 12 सितंबर, 1730 में खेजड़ली आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन में अमृता देवी के नेतृत्व में 363 बिश्नोई महिला-पुरुषों और बच्चों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था। इस घटना को खेजड़ली नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है। यह आंदोलन राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में हुआ था। दरअसल, इस गांव में खेजड़ी के पेड़ों की बहुतायत थी, इसलिए इसका नाम खेजड़ली पड़ा। मारवाड़ के महाराजा अभय सिंह ने अपने नए महल के निर्माण के लिए चूना जलाने के लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था। इस आदेश का लोगों ने विरोध किया। अमृता देवी ने पेड़ों को काटने का विरोध करते हुए कहा था कि वह पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे देंगी। “सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण”, उनकी यह पंक्तियां लोगों को एकजुट कर गईं।

इस आंदोलन को 20वीं शताब्दी के चिपको आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है। महाराजा के आदेश के बाद पेड़ो को बचाने के लिए अमृता देवी और उनकी 3 पुत्रियों ने सबसे पहले खेजड़ी से चिपककर अपना सिर कटा लिया था। उनके साथ कुल 363 लोगों ने भी बलिदान दे दिया था। प्रदर्शनकारियों के बलिदान के बाद, शासक को भी पेड़ काटने का आदेश वापस लेना पड़ा। खेजड़ली नरसंहार आंदोलन की याद में हर साल 12 सितंबर को खेजड़ली दिवस मनाया जाता है।

जिस तरह से वर्तमान में विकास के नाम पर पेड़ो विशेषकर खेजड़ी को काटा जा रहा है उससे यही लग रहा है कि खेजड़ली आंदोलन की फिर से जरूरत है। बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा सोलर प्लांट के नाम पर पेड़ो को काटा जा रहा है। कंपनियां पेड़ काटकर दूसरी जगह पेड़ लगाने का आश्वासन दे रही है लेकिन जो पेड़ लगाए जा रहे है उनके संरक्षण एवं पालन पोषण की जवाबदेही तय नहीं है। पेड़ लगाने की इतिश्री ही की जा रही है।

खेजड़ली गांव के 363 लोगों के बलिदान को बिसराकर रेगिस्तान में सोलर और विंड प्रोजेक्ट के नाम पर आए दिन खेजड़ी के हजारों पेड़ों की बलि ली जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि ”अनियोजित सोलर और विंड प्रोजेक्ट के कारण रेगिस्तान की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। लाखों पेड़ काटकर सोलर पैनल लगाए जाने से इनके आस-पास के क्षेत्रों का तापमान 2 से 5 डिग्री तक बढ़ा है। सोलर पार्क के लिए पेड़ों की बलि देना रेगिस्तान के जन-जीवन को खतरे में डालना है।”

मरुभूमि राजस्थान में जिस खेजड़ी के पेड़ को बचाने के लिए 295 साल पहले खेजड़ली बलिदान जैसी अमर गाथा रची गई, वही आज बेतरतीब विकास की भेंट चढ़कर अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा है। खेजड़ली गांव के 363 लोगों के बलिदान को बिसराकर रेगिस्तान में सोलर और विंड प्रोजेक्ट के नाम पर आए दिन खेजड़ी के हजारों पेड़ों की बलि ली जा रही है

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