The Khabar Xpress 08 सितंबर 2025। पहले के लोग गौधन और पर्यावरण के प्रति कितने संवेदनशील थे। हरेक गांव और शहर के बाहर गोचर भूमि छोड़ी जाती। लोग इतने निष्ठावान थे कि इस गोचर की भूमि से एक लकड़ी भी उठाना पाप समझते। प्रसिद्ध संत स्वामी रामसुखदासजी महाराज ने कहा था कि गोचर की भूमि पर कब्जा करनेवाले को सैकड़ों गायों की गोहत्या का पाप लगता है। श्रीडूंगरगढ में एक विशाल गोचर के रूप में बीड़ कायम किया गया। आओ, आपको श्रीडूंगरगढ के इस बीड़ के सम्बन्ध में कुछ बातें बताते हैं।
बीकानेर राज्य की कागदों की बही में उल्लेख है कि श्रीडूंगरगढ के संस्थापक महाराजा श्रीडूंगरसिंहजी के आदेश से गायों के चरने के लिए यहां 8000 बीघा भूमि का बीड़ छोड़ा गया, बाद में प्रेम सुख व्यास की प्रेरणा से लोगों ने अपने-अपने खेत भी परित्याग कर बीड़ को दे दिए, जिससे यह भूमि बढकर पन्द्रह हजार बीघा से अधिक हो गई।
फिर वर्षों तक एक बीड़ कमेटी इस भूमि की देखभाल करती रही। तीस -चालीस साल से अब उस कमेटी का न अस्तित्व रहा और न नियंत्रण। न वैसी संवेदना और मूल्य ही रहने के कारण कितने लोग इस भूमि को हड़पने में लगे रहते हैं।
श्रीडूंगरगढ में पन्द्रह हजार बीघा भूमि पर बीड़ रहा है। अफसोस इन दसों वर्षों में हीन मनोवृत्ति के लोगों ने लगभग पांच हजार बीघा भूमि पर कब्जे कर लिए हैं।
बीड़ हिन्दी के बीहड़ शब्द का ही राजस्थानी रूपान्तरण है। सन् 1929 में चूरू, रतनगढ, सरदारशहर, फतेहपुर, रामगढ और श्रीडूंगरगढ जैसे शहरों के निकट बीड़ भूमि कायम करने का आंदोलन छिड़ा।
चूरू में स्वामीजी गोपालदास ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। रतनगढ में सेठ सूरजमल जालान ने यह कार्य किया। फतेहपुर में जयदयालजी कसेरा ने बीड़ के लिए बड़ा भारी दान किया। चूरू में भगवान दास बागला ने ढाई हजार बीघा जमीन बीड़ को दान दी। धार्मिक पुस्तकों के मुम्बई में बहुत बड़े प्रकाशक खेमराज श्रीकृष्णदास जो कि मूलतः चूरू के थे, उन्होंने 8 हजार बीघा जमीन दान दी।
निकट के शहरों की इस प्रेरणा के फलस्वरुप श्रीडूंगरगढ में भी बीड़ के लिए भूमि दान देने की प्रेरणा जगाने का काम आडसरबास के श्री प्रेमसुख व्यास ने किया। प्रेमसुख व्यास इस शहर के एक उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे भूदानी विनोबा भावे से बहुत प्रभावित थे। कालू मार्ग पर आज जो आठ किलोमीटर तक बीड़ दिखाई देता है, उसमें श्रीडूंगरगढ के सैकड़ों लोगों ने स्वेच्छा से अपनी भूमि दान की। स्वयं मेरे बाबाजी एवं पिता जी ने 350 बीघा जमीन बीड़ को प्रदान करदी।
आज बीड़ भूमि पर कब्जा करने वाले नराधम नहीं जानते कि यह गोचर के रूप में सहृदय लोगों की दान की हुई भूमि है। इस के लिए एक बीड़ कमेटी बनी हुई थी। तत्कालीन सरकार के साथ यह समझौता हुआ था कि यह भूमि सरकारी हस्तक्षेप की नहीं होगी तथा इस पर सरकारी और गैर सरकारी किसी प्रकार का कब्जा या पट्टा नहीं बनाया जा सकता।
धीरे-धीरे बीड़ कमेटी शिथिल हो गई और स्वार्थी राजनीति ने इस बहुमूल्य धरोहर को छिन्न -भिन्न और खुर्द -बुर्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शास्त्रों में कथन है, जो व्यक्ति गोधन हित का पैसा या भूमि को खा जाता है या दुरूपयोग करता है, वह रौरव नर्क का भागी बनता है। आज सुंदर बीड़ पर कब्जा करने की प्रवृत्ति को देखकर पूर्वजों की आत्मा रोती है।
गोचर भूमि की महत्ता शास्त्रों में बढ-चढ कर गाई गई है।
श्रीडूंगरगढ बीड़ धणी -धोरी विहीन हो गया है। बीड़ की एक डाली भी काटना महापाप होता है। इस बीड़ की तीन लाख से अधिक खेजड़ी के पेड़ विगत वर्षों में कौन काटकर ले गया और किसने किस- किस तरह से इसका दोहन किया है, यह अनुसंधान का विषय है, पर यहां ऐसे विषय में रूचि किसकी है। मैंने जिन शहरों के नाम बताए हैं, वहां बीड़ आज भी ज्यों के त्यों सुरक्षित हैं। इस भूमि के प्रति राज और समाज दोनों की संवेदना मर गई है।
लेखक
डॉ. चेतन स्वामी
वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार