The Khabar Xpress 15 जुलाई 2025। जिसकी नींव ही संदेहपूर्ण लगी हो वो कार्य अपने अंजाम तक कैसे पहुंच सकता है ? इसका बड़ा उदाहरण है श्रीडूंगरगढ़ का ट्रॉमा सेंटर एवं उपजिला अस्पताल। कांग्रेस की गत राजस्थान सरकार ने अपने अंतिम शासकीय दिनों में श्रीडूंगरगढ़ में ट्रॉमा सेंटर एवं उपजिला अस्पताल की घोषणा की। श्रीडूंगरगढ़ के तत्कालीन विधायक कॉमरेड गिरधारीलाल महिया ने अपने भविष्य की राजनीति की नींव को मजबूत करने के इरादे से आनन फानन में ही कस्बे के दानदाताओं से आधी-अधूरी निर्माण सहमति लेकर ट्रॉमा सेंटर व उपजिला अस्पताल की नींव भी गाजे बाजे के साथ रख दी।
चुनाव आये, मतदान हुआ और जनता ने पुर्व विधायक के अरमानों पर पानी फेरते हुए नई सरकार के साथ नए विधायक ताराचंद सारस्वत का चुनाव भी कर लिया। इसी के साथ शुरू हो गया ट्रॉमा का वह ड्रामा जो गत 8 जुलाई को क्षेत्र के गुसाईसर बड़ा गांव में सूबे के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के आने के बाद उनके द्वारा की गई घोषणा के साथ ही खत्म हो गया। लेकिन इस समयकाल में जो आरोप-प्रत्यारोप, शासकीय शह और मात के साथ कागजो का ड्रामा चला वो अपने आप मे ही अनूठा है।
गत सरकार की घोषणा के बाद भी जब ट्रॉमा सेंटर निर्माण का कोई मार्ग दिखाई नही दे रहा था तब कस्बे के कुछ उत्साही युवकों ने 15 अक्टूबर 2024 को ट्रॉमा सेंटर व उपजिला अस्पताल का निर्माण न होने तक अनिश्चितकालीन धरना आरम्भ कर दिया। इस धरने के आजतक के लगभग 270 दिनों के इतिहास में जितनी छीछालेदार दानदाताओ की व आधी अधूरी घोषणा की हुई उतनी कभी न देखी गई और ना ही सुनी गई। आखिर में इस सम्पूर्ण ड्रामा पर पर्दा गिराया वर्तमान विधायक ताराचंद सारस्वत ने अपने निज गांव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को बुलाकर नए सिरे से ट्रॉमा सेंटर एवं उपजिला अस्पताल के निर्माण की घोषणा करवाकर।
ये चुनाव का मामला है….
8 जुलाई को जब प्रदेश के मुखिया द्वारा नए सिरे से ट्रॉमा सेंटर एवं उपजिला अस्पताल की घोषणा कर इस पूरे ड्रामे का पटाक्षेप कर दिया गया तब भी श्रीडूंगरगढ़ उपखंड कार्यालय के आगे लगाया जा रहा धरना अब क्षेत्रवासियों को पूर्णतया राजनैतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित लग रहा है। इसका कारण है भी हर कोई जानता है कि जब धरने की शुरुआत कस्बे के कुछ उत्साही युवकों द्वारा की गई थी तब विपक्षी पार्टी ने इसमें अपना राजनैतिक हित देखा एवं इसे एक अवसर मानकर पुर्व विधायक गिरधारीलाल महिया इस धरने से जुड़े तथा इस धरने की पूरी कमान अपने हाथ मे ले ली। धरने की शुरुआत में ही घोषणा कर दी गयी थी कि ये तब तक चलेगा जब तक इस पर कोई स्पष्ट नतीजा न निकल जाए। ट्रॉमा सेंटर व उपजिला अस्पताल दानदाता बनाये या सरकार ये स्पष्ट होने के बाद ही धरना उठाया जाएगा। लेकिन सूबे के मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी आजतक इस धरने का जारी रहना इस ओर इशारा करता है कि ये पूर्णतया एक राजनैतिक ड्रामा था जिसकी भेंट कस्बे के कुछ उत्साही युवा चढ़ गए। पंचायतीराज एवं नगर निकाय के चुनाव अगले कुछ महीनों में होने वाले है। विपक्ष नहीं चाहता कि जो गतिविधि उसने राज के खिलाफ शुरू की थी उसका अंत हो। अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं के सुप्त होने की अपेक्षा चंद महीनों तक इसे क्रियाशील रखा जाए जिससे भविष्य के चुनावो में इसका इस्तेमाल किया जा सके। सबसे बड़ी बात ये थी कि पूरी कांग्रेस पार्टी ने हमेशा से ही इससे दूरी बनाए रखी।
जिस राजनैतिक अवसरवादिता की सोच आमजन के खयालों में थी वो जनता के समझ आगयी कि ट्रॉमा का ड्रामा जनता का मामला नहीं था, ये तो बस चुनाव का मामला है….
सुनी -सुनाई
सुनी-सुनाई बात ये है कि जब मुख्यमंत्री द्वारा 8 जुलाई को ट्रॉमा सेंटर निर्माण की घोषणा कर दी गयी तब धरनास्थल पर धरनार्थियों द्वारा इस धरने को आगे जारी रखने या यहीं समाप्त करने पर गर्मागर्म चर्चा हुई थी। इस चर्चा में जो सुगबुगाहट सुनने को मिली वो ये थी कि उत्साही युवा अब इस धरने को यही खत्म करने के पक्ष में थे लेकिन राजनैतिक हितसाधको की महत्वाकांक्षा के चलते इस धरने को अनवरत जारी रख दिया गया। खिंचाव तो हो गया है अब देखना ये है कि कितना खींचने पर ये टूटेगा। या फिर चुनाव की चुनावी वैतरणी पार करने का ये एक माध्यम बनेगा।