The Khabar Xpress 05 मई 2025। श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र में सड़क दुर्घटनाओं के हर महीने इतने मामले आते है कि एक दुर्घटना में हताहत लोगो के प्रति संवेदना का ज्वार थमता नहीं उससे पहले ही दूसरे की खबर आ जाती है। क्षेत्र में आये दिन सड़क दुर्घटनाओं के मामलो में बढ़ोतरी हो रही है। ये दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमार्ग सहित राज्य मार्गो एवं ग्रामीण इलाकों की सड़कों पर भी बहुतायत से हो रहे है। इन सड़क दुर्घटनाओं का कारण कुछ भी रहे… चाहे लापरवाही से ड्राइविंग हो, या तेज गति से ओवरटेक या फिर किसी नशे में गाड़ी चलाना हो। लेकिन इन दुर्घटनाओं में घायलों को समय पर इलाज न मिल पाने के कारण हो रही मौतों का जिम्मेदार कौन है…?
इन मौतों का जिम्मेदार कौन…?
आज ही श्रीडूंगरगढ़ में दो वाहनों की टक्कर से दस से ज्यादा नागरिक घायल हो गये व एक की मृत्यु भी हो गयी। ऐसे ही मामले हर दूसरे रोज हो रहे है लेकिन पता नहीं क्यों यहाँ के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की आत्मा उनको नहीं धिक्कारती ?
कहने को श्रीडूंगरगढ़ में उपजिला अस्पताल एवं पॉली ट्रॉमा सेंटर है लेकिन सुविधाएं एक सामान्य अस्पताल की भी नहीं है। श्रीडूंगरगढ़ अस्पताल का नाम भले ही “उपजिला अस्पताल” हो, लेकिन उसकी सेवाएं या सुविधाएं वास्तव में उपजिला स्तर के अस्पताल के मानकों के अनुरूप नहीं हैं।
गाहे बगाहे ये सुनने को मिल ही जाता है कि श्रीडूंगरगढ़ उपजिला अस्पताल के हालात इतने बदतर है कि अगर किसी के नाखून भी टूट जाये तो उसको बीकानेर रेफर कर दिया जाता है।
हॉस्पिटल है स्वयं बीमार …
अगर बायोमेट्रिक उपस्थित करवाई जाए या अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले जाए तो पता चल जाएगा कि यहां के डॉक्टर्स अपने कर्तव्यों के प्रति कितने गम्भीर है। समय पर अपनी सीट पर उपस्थित ही नहीं मिलेंगे ऐसी शिकायतें आमजन करते रहते है। फिर कोढ़ में खाज का काम होता है यहां विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी। आज भी श्रीडूंगरगढ़ उपजिला अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ का पद रिक्त है और जो महिलाएं यहां प्रसव करवाने आती है वो यहाँ उपस्थित नर्सिंग स्टाफ के हवाले होती है। एक फिजिशियन है उनको भी बीसीएमओ बना दिया गया जो रोगियों को देखे या अन्य विभागीय कार्यो को निपटाए। सूत्रों से ये भी पता चला है कि एक डेंटिस्ट डॉक्टर जिनकी पोस्टिंग तो यहाँ पर है लेकिन वे अपनी “व्यवस्था” से कहीं ओर बैठे हुए है तो एक डॉक्टर तो इससे भी आगे निकल गए। सुनने में आ रहा है कि किसी ट्रेनिंग में हिस्सा लेने गए है जो पता नहीं कब पूरी होगी और उनको अवसर मिला हुआ है यहाँ ड्यूटी नहीं करने का। वहीं एक डॉक्टर जिनका तबादला हो चुका है वो न्यायालय की शरण मे गए और यहीं डेरा जमा कर बैठ गए है जिसके फलस्वरूप अपनी मनमर्जी से ही डॉक्टरी कर्तव्यों का निर्वहन किया जा रहा है। हालात ये है कि ये उपजिला अस्पताल स्वयं ही बीमार है। अब इसका इलाज कौन करे….?
24 घण्टे खुलना चाहिए दवा केंद्र
नाम तो श्रीडूंगरगढ़ उपजिला अस्पताल है और पॉली ट्रॉमा सेंटर भी बनाया हुआ है। प्रतिदिन का रोगी पंजीकरण भी 700 के करीब है। महिला एवं पुरूष वार्ड भी बने हुए है। अस्पताल समय सारणी के बाद भी यहाँ मरीज आते रहते है जो मौजूदा ऑन ड्यूटी स्टाफ द्वारा सेवाएं भी दी जारही है परंतु अगर मरीज को दवा की जरूरत पड़ जाए तो मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा केंद्र आपको बन्द ही मिलेंगे। रोगियों की स्थिति को देखते हुए ये दवा केंद्र भी 24 घण्टे खुले रहने चाहिए। हमारे नजदीकी क्षेत्र रतनगढ़ में 24 घण्टे दवा केंद्रों की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन हमारे यहाँ के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को इस बारे में सोचने का समय ही नहीं। स्थिति इतनी बदतर है कि हॉस्पिटल का समय अगर सुबह 8 से 2 बजे तक है तो एक्स रे विभाग 8 बजे से 12 बजे तक ही एक्स रे करेगा। यही स्थिति निःशुल्क जांच केंद्र की है जो बिना किसी वरिष्ठ लेब टेक्नीशियन के सहारे चल रहा है। जो सेम्पल ही 12 बजे तक संग्रहित करता है उसके बाद चाहे डॉक्टर जांच लिखे यहां जांच करवाना मुश्किल ही है। एक्सीडेंट मामले में अगर एक्स रे की जरूरत पड़ जाए तो रोगी को निजी लेबो की तरफ ही देखना पड़ता है।

आखिर कब बनेगा ट्रॉमा…?
5 मई 2023 को श्रीडूंगरगढ़ में ट्रॉमा सेंटर निर्माण के लिए भामाशाह एवं सरकार के बीच एक एमओयू हुआ था। जो इतना विवादित रहा है कि आज 2 साल बीत जाने के बाद भी इस ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के लिए एक ईंट भी नहीं लग पाई है। वर्तमान श्रीडूंगरगढ़ विधायक ताराचंद सारस्वत ट्रॉमा निर्माण पर भामाशाह और विभाग के बीच का मामला बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते है तो विभाग द्वारा भामाशाहों पर विभागीय नॉर्म्स के साथ निर्माण करने की बात करता है। वहीं भामाशाह विभागीय लापरवाही का आरोप लगाकर अब तक निर्माण स्वीकृति जारी नहीं करने का उलाहना दे रहे है। परन्तु इन पाटो के बीच पिस रहा है आम आदमी और सड़क पर घायल इलाज को तरसता एक दुर्घटनाग्रस्त इंसान।
क्षेत्र की विडंबना ये है कि सबसे बड़े जनहित के मुद्दे स्वास्थ्य पर कोई भी राजनीतिक पार्टियां सड़क पर नहीं आती। कांग्रेस विधायक के लगातार हारने पर क्षेत्र में कांग्रेस सुप्त अवस्था मे है तो आंदोलन से निकलकर विधायक बने कॉमरेड विधायक भी अब आंदोलन की राह छोड़ चुके है।