



The Khabar Xpress 18 दिसंबर 2024। कस्बे के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान की लापरवाही से किसी मासूम की जान जा सकती थी। कालुबास प्रदीप कुमार जोशी ने बताया कि मेरी बहन पूजा की डिलीवरी 10 दिसम्बर को श्रीडूंगरगढ़ उपजिला अस्पताल में हुई थी। जच्चा और बच्चा को हॉस्पिटल ने इलाज के बाद छुट्टी दे दी थी। बच्ची के पीलिया का अंदेशा होने के कारण मैं 16 दिसम्बर को सरकारी हॉस्पिटल पहुंचा और वहां पर डॉ दिनेश पड़िहार को दिखाया। डॉ पड़िहार ने कुछ जांचे लिखी जिन्हें करवाने मैं कस्बे के सबसे बड़े चिकित्सीय संस्थान तुलसी मेडिकल एंड रिसर्च सेंटर पहुंचा। जहां पर मुझे हॉस्पिटल के सूर्यप्रकाश गांधी मिले और जांच की पर्ची को देखकर डॉ पड़िहार से फोन पर वार्ता करके जांचे 2 घण्टे के बाद लेने को कहा। मैंने दो घण्टे बाद जांच ली और वही मौजूद डॉ राजकुमार से परामर्श लेकर जच्चा और नवजात बच्ची को लेकर निजी एम्बुलेंस से बीकानेर रवाना हो गया जहां मेने मारवाड़ हॉस्पिटल में डॉ गौरव गोम्बर को दिखाया। डॉ. गोम्बर ने जब सरकारी जांच और तुलसी हॉस्पिटल की जांच का निरीक्षण किया तो देखा कि दोनों ही रिपोर्ट में नवजात बच्ची का ब्लड ग्रुप अलग अलग है। श्रीडूंगरगढ़ की सरकारी जांच में बच्ची का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव बताया गया है जबकि तुलसी हॉस्पिटल की जांच में नवजात बच्ची का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव बताया गया था। डॉ गोम्बर ने इन दोनों रिपोर्ट्स को देखते हुए पुनः रक्त जांच करवाई जहां पर नवजात बच्ची का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव ही आया।



परिजन प्रदीप कुमार जोशी ने बताया कि श्रीडूंगरगढ़ जांच रिपोर्ट के आधार पर नवजात का ब्लड बदलना था लेकिन डॉ गोम्बर ने दोबारा रिपोर्ट करवा कर इलाज आरम्भ कर सुबह तक इंतजार करने को कहा। सुबह नवजात की स्थिति में सुधार होने लगा तो ब्लड बदलना स्थगित कर दिया गया। जोशी का कहना है कि अगर समय रहते वापिस इन रिपोर्ट पर गौर नहीं किया जाता तो तुलसी हॉस्पिटल की लापरवाही का नतीजा खतरनाक हो सकता था और नवजात बच्ची की जान भी जा सकती थी।
हॉस्पिटल प्रशासक ने ये कहा…
तुलसी मेडिकल एंड रिसर्च सेंटर श्रीडूंगरगढ़ के प्रशासक सूर्यप्रकाश गांधी ने फोन पर इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ये लिपिकीय भूल के कारण हुआ है। परिजन को बाद में बता दिया था। ब्लड ग्रुप का कोई ट्रीटमेंट भी नहीं हुआ। हॉस्पिटल में हजार में कोई एक क्लिनिकल मिस्टेक हो जाती है। बड़ी बड़ी अस्पताल में भी कभी कभी क्लिनिकल मिस्टेक हो जाती है।
इस बाबत जब परिजन प्रदीप कुमार जोशी से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि मेरे द्वारा जानकारी देने के उपरांत ही उन्होंने मुझे शाम को 7 बजे के बाद दोबारा रिपोर्ट व्हाट्सएप की थी। जबकि मैं दोपहर 12 बजे के बाद ही हॉस्पिटल से ही रिपोर्ट लेकर चला गया था।

परिजन प्रदीप कुमार जोशी ने बताया कि इस भयंकर लापरवाही से किसी की भी जान जा सकती थी। जबकि हॉस्पिटल सिर्फ इसे क्लिनिकल मिस्टेक बता रहा है। जोशी ने बताया कि इस बाबत एक शिकायत बीकानेर सीएमएचओ को भी दे दी गयी है। हॉस्पिटल पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है।



