



The Khabar Xpress 07 नवम्बर 2024। धरती का सीना चीरकर हम सब का पेट भरता है भूमिपुत्र। अपने खून-पसीने को बहाकर हम सभी के लिए अन्नोपार्जन करता है किसान। लेकिन एक हकीकत ये भी है कि धरती का बेटा कहे जाने वाला किसान हर बार सत्ताधीशों से ठगा जाता रहा है। काल चाहे जो हो, उन्हें हर बार सत्ताधारियों ने सिर्फ अपने वोट बैंक के रूप में ही इस्तेमाल किया हैं। धरती से सोना उगाने वाले किसान के हाथ हमेशा खाली ही रहते है।

विशेष
नीलोफर फ़ारूक़ी ने किसानो के लिए लिखा भी है कि
बंजर ज़मीन पे, बहार लाता है।
अन्नदाता बन, भूख मिटाता है।
हाँ जी साहेब, वो किसान कहलाता है।
अनाज खरीदकर पैसों में, रुपये में तोलते हैं
हकदार को हक़ न देकर, फरेब का ज़हर घोलते हैं।
कालाबाज़ारी का बाज़ार चलता है।
लहू बहाने वाला किसान, पल पल मरता है।
गरीबी से लाचार होकर, खुदकुशी कर जाता है।
हाँ जी साहेब, वो किसान कहलाता है।
दिन रात कड़ी मेहनत कर अनाज उगाने वाले।
क्यों सूली चढ़ जाते है?, निवाला खिलाने वाले।
बदल पाए तो बदल डालो, इनका भी हाल।
वरना दाने, दाने को तरसेंगे, आ जायेगा भूचाल।
पसीना नही अपना, खून बहाता है।
हाँ जी साहेब, वो किसान कहलाता है।
सरकारों के रुख से किसानों को सिर्फ नुकसान ही नुकसान
किसान हित की बात सभी सरकारें और राजनेता करते है लेकिन जब किसानों के हित साधने का समय आता है तो वही सरकारें और राजनेता मौन धारण कर लेते है। किसान हर काल खंड में ठगे जाते रहे है। कभी सरकार ने तो कभी ऊपर वाले ने इनकी आंखों में आंसू लाये है।
जब बीजारोपण का समय आता है तो किसानों को बीज महंगे दामों में खरीदना पड़ता है तो वही जब अपनी मेहनत और पसीने से किसान की फसल पक कर बाजार में बिकने को आती है तो वही फसल ओने पौने दामो में बेचनी पड़ती हैं।
सरकारी रुख से हो रहा किसानों को लाखों का नुकसान
किसान अब मूंगफली की पैदावार को बाजार में ला चुका है। कृषि मंडियों में मूंगफली के ढेर लगे हुए है। बोलीदाताओं द्वारा मूंगफली के कीमत लगाई जा रही है। आज कृषि मंडियों में मूंगफली का बाजार भाव 4000 से 5000 तक लग रहा है। किसान अपनी मेहनत की कमाई को पूंजीपतियों के हाथों संचालित बाजार में अपनी फसल को बेचने पर मजबूर है। किसान जब इसी मूंगफली उत्पादन के लिए बीज खरीदता है तो उसे महंगे दामो पर खरीदना पड़ता है। अलग अलग कंपनियां अपने ब्रांड के हिसाब से मूंगफली बीजो का मूल्य 12000 से लेकर 17000 रुपये प्रति क्विंटल तक बेच रही है।

आखिर कब तक ठगा जायेगा भूमिपुत्र..?
किसान महंगे दामो में बीज खरीदकर सस्ते दामो में अपनी फसल को बेचने पर मजबूर है। इस पर भी कोढ़ में खाज का काम सरकारी रुख कर रहा है। साल 2024-25 के लिए मूंगफली का समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6,783 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। लेकिन किसान बाजार में 4000 से 5000 के बीच बेचने को मजबूर है। सरकारी खरीद में सिर्फ 25 क्विंटल ही मूंगफली की खरीद होती है जबकि एक किसान की सामान्य पैदावार लगभग 200 क्विंटल के करीब होती है। सरकारी खरीद की कीमतों से अगर गणना की जाए तो किसानो को 2000 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। हर किसान को ही सम्पूर्ण फसल की सरकारी खरीद नहीं होने के कारण लाखो का नुकसान हो रहा है। किसान को उपजाने के लिए खरीदना महंगा पड़ता है जबकि अपनी मेहनत और लागत भी वो निकाल नहीं पाता और उसे बेचना सस्ता पड़ रहा है। सरकारी उदासीनता के कारण भूमिपुत्र हर बार ठगा जा रहा है।
कब लागू हुई थी एमएसपी..?
MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की प्रणाली को पहली बार 1966-67 में गेहूं के लिए पेश किया गया था और बाद में अन्य आवश्यक खाद्य फसलों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया गया।
जब 1960 के दशक में हरित क्रांति शुरू हुई, तो भारत सक्रिय रूप से अपने खाद्य भंडार को बढ़ाने और भोजन की कमी को रोकने की कोशिश कर रहा था।
MSP प्रणाली अंततः 1966-67 में गेहूं के लिए शुरू हुई और अन्य आवश्यक खाद्य फसलों को शामिल करने के लिए इसका और विस्तार किया गया।
इसके बाद इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती दरों पर गरीबों को बेचा गया। 2003 में केंद्रीय मंत्री अजीतसिंह ने मूंगफली को एमएसपी खरीद में शामिल करवाया था।
