




The Khabar Xpress 18 अक्टूबर 2024। कानून ‘अंधा’ नही है अब। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड के आदेश पर अब अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में अहम बदलाव किए गए हैं। ये बदलाव स्पष्ट रूप से बड़े संदेश दे रहे हैं। न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इस पट्टी को खोल दिया गया है, जिससे संभवत: आम लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में स्थापित नई मूर्ति को मशहूर शिल्पकार विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने तराशा है।

तलवार की जगह संविधान ने ली
सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई गई है. जिनकी आंखों में पट्टी नहीं है। पहले न्याय की देवी की मूर्ति के बाएं हाथ में तलवार रहा करती थी, जिसे हटा दिया गया है। अब तलवार की जगह संविधान रखा गया है, जिससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हर आरोपी के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। अदालत में लगी न्याय की देवी की मूर्ति ब्रिटिश काल से ही चलन में है, लेकिन अब इसमें बदलाव करके न्यायपालिका की छवि में समय के अनुरूप बदलाव की सराहनीय पहल की गई है।
नया नहीं है न्याय की देवी का इतिहास
न्याय की देवी का इतिहास बहुत पुराना है. न्याय की देवी अलग-अलग सभ्यताओं में अलग-अलग रूपों में दिखाई गई है. न्याय की देवी की सबसे शुरुआती मूर्ति प्राचीन मिस्र में पाई जाती है. कहा जाता है कि ये देवी माट (Ma’at) की थी. माट सत्य, व्यवस्था, और संतुलन का प्रतीक थीं. उन्हें अक्सर एक पंख पकड़े हुए दिखाया जाता था, जिसका उपयोग मृत्यु के बाद आत्मा के न्याय के लिए किया जाता था.

ग्रीक और रोमन सभ्यताओं ने बाद में अपनी खुद की न्याय की मूर्ति बनाई. ग्रीक देवी थेमिस कानून और व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती थीं, जबकि उनकी बेटी डाइक न्याय और नैतिक व्यवस्था का प्रतीक थीं. थेमिस, को तराजू पकड़े हुए दिखाया गया था. इन्हें ही न्याय की देवी का शुरुआती रूप माना जाता है. रोमन पौराणिक कथाओं में, थेमिस को जस्टिटिया के साथ जोड़ा गया था, जो न्याय की देवी थीं. जस्टिटिया की छवि आज की न्याय व्यवस्था को दिखाने के लिए रखी जाती है.
पारंपरिक प्रतीक और उनके मतलब
पारंपरिक रूप से न्याय की देवी की मूर्ति में तीन चीजें शामिल होते हैं: आँखों पर पट्टी, तराजू, और तलवार. इन प्रतीकों का अलग-अलग मतलब होता है:
–आंखों पर पट्टी: यह पहली बार 16वीं शताब्दी में न्याय की मूर्तियों पर दिखाई दी, जो निष्पक्षता का प्रतीक था. इसका मतलब यह है कि कानून को सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, चाहे उनकी संपत्ति, शक्ति, सामाजिक स्थिति, या दूसरे बाहरी प्रभाव कुछ भी हो. यह दिखाता है कि न्याय निष्पक्ष और निष्कपट है.
-तराजू: तराजू साक्ष्य और तर्कों के तौलने का प्रतीक है. यह दिखाता है कि कानून को किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले सभी पक्षों पर विचार करना चाहिए. यह निष्पक्षता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें न्याय साक्ष्य के आधार पर दिया जाता है.
-तलवार: पारंपरिक रूप से तलवार कानून की ताकत और उसके निर्णयों को लागू करने की शक्ति का प्रतीक है. यह अक्सर बिना म्यान के चित्रित की जाती है, जो यह दर्शाती है कि न्याय पारदर्शी, जल्द, और निर्दोष की रक्षा करने या दोषी को दंडित करने में सक्षम है.

दुनिया भर में न्याय की देवी की मूर्तियां कैसी हैं?
न्याय की देवी की मूर्तियां दुनिया भर में अदालतों में एक जैसी नहीं है. कुछ देशों में न्याय की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी है तो कुछ में नहीं. उदाहरण के लिए, अमेरिका में, न्याय की देवी की मूर्ति पर आमतौर पर पट्टी बंधी होती है. जर्मनी में, फ्रैंकफर्ट के रोमर में स्थित न्याय की देवी की मूर्ति बिना पट्टी के दिखाई जाती है.
भारत में किसकी है ये मूर्ति ?
न्याय की देवी का कॉन्सेप्ट भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से आया है. भारत में ब्रिटिश शैली की अदालतें हैं और कानूनी संस्थान भी ऐसे ही हैं. तभी से न्याय की देवी की मूर्ति भी उपयोग की जा रही है. कहा जाता है कि भारत में जो न्याय की देवी की मूर्ति है वो रोमन पौराणिक कथाओं वाली जस्टिटिया हैं. भारत में, यह प्रतिमा अक्सर अदालत, लॉ कॉलेज और दूसरे कानूनी संस्थानों के बाहर देखी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की देवी की मूर्ति बदलने का निर्णय भारत में कानूनी प्रतीकों को आधुनिक बनाने और औपनिवेशिक युग की छाप को हटाने के लिए लिया है. CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जोर दिया है कि भारतीय न्यायपालिका को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़कर न्याय का एक नया रुख अपनाना चाहिए.

