




द खबर एक्सप्रेस 06 जनवरी 2024। स्वच्छ राजनीति के पुरोधा श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति के पूर्व प्रधान और क्षेत्र के दिग्गज नेता दानाराम भामू का शुक्रवार 05 जनवरी को सुबह हृदयाघात से निधन हो गया। क्षेत्र में दिग्गज नेता के निधन से शोक की लहर दौड़ गई। वे 71 वर्ष के थे।
राजनीतिक सुचिता के पर्याय थे स्व. दानाराम भामू
राजनीति जैसे क्षेत्र में सरल प्रकृति के व्यक्ति को ढूंढना सहज नहीं होता। पर एक व्यक्ति ऐसे थे, जिन्होंने छल कपट को परे रखकर राजनीति की और राजनीति मूल्यहीन होने लगी तो उसका परित्याग करने में देर भी नहीं लगाई। राजनेताओं की भीड़ में सदैव अलग नजर आते रहे थे –श्री दानाराम जी भामू।
सदा ही प्रसन्नचित और हंसमुख स्वभाव के दानारामजी ऐसे व्यक्ति रहे हैं, जिनकी प्रशंसा प्रतिपक्ष के लोग भी करते रहे थे। श्रीडूंगरगढ पंचायत समिति के प्रधान रहे दानारामजी का जन्म 20 जनवरी 1952 को मोमासर के भामू परिवार में हुआ। मोमासर का भामू परिवार अनेक प्रकार से प्रसिद्ध रहा है। बाल्यकाल से ही दानारामजी में सेवा के संस्कार रहे। दानारामजी ने राजनीति विज्ञान में एम ए की। अपने क्षेत्र में कृषि में फव्वारा आदि के द्वारा नवाचार किया। सभी प्रकार के नशों से दूर रहे दानाराम जी। चरित्र को वे सब से बड़ी पूंजी मानते थे। जब वे वकालत की पढाई कर रहे थे, तभी मोमासर के सरपंच चुन लिए गए। जीवन में सोलह चुनाव लड़े और चौदह में सफल हुए। 1987 में चूरू जिला सहकारी समिति के अध्यक्ष बने। 1985 में जिला परिषद के सदस्य बने। सहकारिता क्षेत्र में आपने खास लोकप्रियता प्राप्त की। मोमासर के पर्यावरण कार्यक्रम में आपका बड़ा योगदान रहा। यहां के रामदेव धोरे पर एक लाख पेड़ लगाए गए। राजीव गांधी जनसंख्या नियंत्रण मिशन ने आपको पुरस्कृत किया।
दानारामजी ने प्रधान के तौर पर श्रीडूंगरगढ पंचायत समिति में ईमानदारी तथा निष्ठा से कार्य किया। उनकी कार्य शैली सब से हटकर रहीं। दानारामजी को कमीशन शब्द से चिड़ थी। राजनीति में वे शुचिता के पक्षधर रहे । जहां एक ओर उन्होंने इस क्षेत्र को कृषि कुओं की सौगात दी, वहीं वे कृषकों द्वारा रसायन छिड़कर जमीन को जहरीला करने की प्रवृत्ति की मलामत करते नहीं थकते। राजनीति में जाने के बावजूद उन्होंने साहित्य पढने के स्वभाव का परित्याग नहीं किया। आखिर उन्होंने राजनीति को ही गुडबाय कह दिया। हर व्यक्ति से वे मनुहार पूर्वक मिलते रहे।
आप 1980 से सरपंच बनकर राजनीति में आए ।
आप उस समय के ग्रेजुएट थे फिर भी आप 1980 के प्रधान के चुनाव में धोती कुर्ते के साथ ही नजर आये जोकि हम राजस्थानी लोगों की वेशभूषा है आपकी पूरी जिंदगी में यही वेशभूषा रही । जिसके हम सभी कायल रहे । 5 जनवरी 2024 को अचानक हृदयघात के शिकार हुए और नश्वर संसार को अलविदा कह गए। एक भले व्यक्ति का असमय जाना, सभी को दुखी कर गए।
साहित्यकार एवं इतिहासकार
डॉ. चेतन स्वामी
